भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं नहीं जानता / विनोद शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस शहर में
नैतिकता के मुद्दे पर बुद्धिजीवी
उन वकीलों की तरह बहस करते हों
जो केस जिताने का झूठा वादा कर
अपनी फीस के नाम पर
ऐंठ चुके हैं हत्यारों से मोटी रकम

वहां बुद्धिजीवियों की
उस कभी न खत्म होने वाली बहस में
हस्तक्षेप करने के लिए
मुझे कैसी कविता लिखनी चाहिए

मैं नहीं जानता।