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मैं नहीं रह सका मुश्किल हो कर / नवीन जोशी
Kavita Kosh से
मैं नहीं रह सका मुश्किल हो कर।
सो रहा नज़्र-ए-मसाइल हो कर।
ख़ूबसूरत तो सियाही भी है,
गाल पर उभरे अगर तिल हो कर।
अब जो तूफ़ाँ से मुझे इश्क़ हुआ,
तो चला आया वो साहिल हो कर।
आरज़ू बन के मिला है वो बहुत,
अब मिले तो मिले हासिल हो कर।
बन के पत्थर न पड़े रहना यूँ,
राह में ख़ुद की ही हाइल हो कर।
मुस्तहिक़ एक ही है तेरा रक़ीब,
देख ले ख़ुद के मुक़ाबिल हो कर।