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मैं नहीं हूँ / सुन्दरचन्द ठाकुर
Kavita Kosh से
वह जो खिसियाता हुआ आदमी है
मैं नहीं हूँ
जिसकी आँख में नमी है
मैं नहीं हूँ
बात-बात पर छलकता
रोशनी में झलकता
अफ़सरों की डाँट खाता
मुस्तैद नौकरी बजाता
राशन की लाइन में
ख़ुशियों की ख़्वाहिश में
जीवन के जंजाल में
इतने बुरे हाल में
मैं चीखता कहता हूँ तुमसे
वह मैं नहीं हूँ
मैं मज़े में हूँ