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मैं निर्धन कंगाल आदमी तूं राजा की जाइ / बाजे भगत
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मैं निर्धन कंगाल आदमी तूं राजा की जाइ
मेरै रहण न घर नहीं तूं महल छोड़ कै आइ
थारे महल बंगले कोठी न्यारे-न्यारे मरदाने और जनाने
मेरे अन्न, वस्त्र का टोटा सै, थारै तरह-तरह के खाणे
थारे धन माया के भरे खजाने, मेरे धोरै ना एक पाई
थारे धन माया के कोष भरे, और नौकर रहैं रुखाळे
कर्जा खस्म मर्द का हो मेरे वक्त टलैं सैं टाळे
तेरे पिता नै कर दिए चाळे, तूं निरधन गेल्यां ब्याही
मेरै ठौड़ ठिकाणा कोन्या तूं कित दर-दर फिरया करैगी बण म्हं शेर बघेरे बोलैं तू उनतै डरया करैगी
मेरे साथ म्हं भरया करैगी राजबाला खूब तवाई
बड़े आदमी कहया करैं ना टोटा किसे का मीत
कहै ‘बाजे भगत’ धर्म शास्त्र सारे राखै जीत
अपने कैसे तैं करया करैं प्रीत बैर और अस्नाइ