भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं ने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से;
रंग गई क्षणभर,
ढलते सूरज की आग से।
मुझ को दीख गया:
सूने विराट् के सम्‍मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्‍मोचन
नश्‍वरता के दाग से!