भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं ने ही पुकारा था / अज्ञेय
Kavita Kosh से
ठीक है
मैं ने ही तेरा नाम ले कर पुकारा था
पर मैं ने यह कब कहा था
कि यों आ कर
मेरे दिल में जल?
मेरे हर उद्यम में उघाड़ दे
मेरा छल,
मेरे हर समाधान में
उछाला कर सौ-सौ सवाल
अनुपल?
नाम : नाम का एक तरह का सहारा था।
मैं थका-हारा था
पर नहीं था किसी का गुलाम।
पर तूने तो आते ही फूँक दिया घर-बार
हिये के भीतर भी जगा दिया नया हाहाकार ओ मेरे राम!
बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), 17 मार्च, 1969