मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ / कमलेश द्विवेदी
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।
मैं रस्ते की ठोकर भर हूँ।
पहले तुमने मुझे उठाया
मन्दिर में रख मान बढ़ाया।
पूजन-अर्चन-वन्दन करके
ईश्वर जैसा मुझे बनाया।
पूजन कर क्यों फेंका बाहर
खण्डित पड़ा किनारे पर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।
आने वाले फिर आयेंगे
जाने वाले फिर जायेंगे।
फिर मारेंगे मुझको ठोकर
फिर सब चोटें पहुँचायेंगे।
फिर सबके पैरों से अनगिन
चोटें खाने को तत्पर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।
शायद कोई देखे आकर
ले जाये फिर मुझे उठाकर।
गंगा जल में करे विसर्जित
कुछ अक्षत कुछ फूल चढ़ाकर।
किसी और के हाथ विसर्जित
होने से यों ही बेहतर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।
पत्थर कहाँ सतह पर ठहरे।
वो पानी में डूबे गहरे।
जिस पर "उसका" नाम लिखा हो
केवल वह ही ऊपर तैरे।
मुझ पर "अपना" नाम लिखो तुम
पड़ा तुम्हारे ही दर पर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।