भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं पहुँचूँ तुम्हारे पास / सुशान्त सुप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं पहुँचूँ
तुम्हारे पास

बेचैन मनों में चैन-सा
तपती धूप में ठंडी रैन-सा
सूरदास में दृष्टि-भरे नैन-सा

मैं पहुँचूँ
तुम्हारे पास

सूखी धरती पर बारिश के जल-सा
बुझे जीवन में खिले कमल-सा
हार रहे योद्धा में विजय के सम्बल-सा

मैं पहुँचूँ
तुम्हारे पास

जलते रेगिस्तान में हरे नखलिस्तान-सा
हैवानियत भरी दुनिया में नेक इंसान-सा
'आसन्न-मृत्यु अनुभव' के मरीज़ में
फिर से लौट आए प्राण-सा ।