भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं पिय के गुनगन गाऊँ री! / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ध्वनि, व्रज के लोकगीत, कहरवा 18.7.1974

मैं पिय के गुनगन गाऊँ री! मैं पिय के गुनगन गाऊँ।
मेरे पिया मेरे हिये बसत हैं, मैं सुमिरि-सुमिरि सचुपाऊँ री!मैं0॥
मेरे पिया को सकल पसारो मैं देख दंग रह जाऊँ री! मैं देख0॥
मेरे पिया अग-जग के नायक, मैं उनके बल गरबाऊँ री!॥मैं उनके0॥
मेरे पिया दीनन के पालक, मैं निज में दैन्य जगाऊँ री!॥मैं निज में0॥
मेरे पिया करुना के सागर, मैं निर्भय गुनगन गाऊँ री!॥मैं निर्भय0॥
मेरे पिया हैं सब के स्वामी, मैं सबसे नेह निभाऊँ री!॥मैं सबसे0॥
मेरे पिया हैं रसिक सिरोमनि, मैं उनकों नाचि रिझाऊँ री!॥मैं उनको0॥
मेरे पिया हैं खेल-खिलारी, मैं निजको गेंद बनाऊँ री!॥मैं निज को0॥
मेरे पिया हैं अग-जग प्रेरक, मैं उनको जन्त्र कहाऊँ री!॥मैं उनको0॥
मेरे पिया हैं प्रीति-भिखारी, मैं अनुदिन प्रीति बढ़ाऊँ री!॥मैं अनु0॥
मेरे पिया ही को है सब कुछ, मैं अपनो कछू न पाऊँ री!मैं अपनो0॥
मेरे पिया हैं दुरगुन-द्वेषी, मैं दुरगुन सों घबराऊँ री!॥मैं दुरगुन0॥
मेरे पिया सन्तन के प्रेमी, मैं सन्त-सरन में जाऊँ री!॥मैं सन्त0॥
मेरे पिया ही तो हैं सब कुछ, मैं निजको अलग न पाऊँ री!॥मैं निज0॥
मेरे पिया बिनु कहूँ न कुछ भी, मैं आप न कुछ रह जाऊँ री!॥मैं आप0॥