मैं पुरानी कविता लिखता हूं / शिरीष कुमार मौर्य
इधर
पुरानी कविताएँ मेरा पीछा करती हैं
मैं भूल जाता हूँ उनके नाम
कई बार तो उनके समूचे वजूद तक को मैं भूल जाता हूँ
कोई कवि-मित्र दिलाता है याद -
मसलन अशोक ने बताया मेरी ही पंक्ति थी यह
कि स्त्री की योनि में गाड़ कर फहराई जाती रहीं
धर्म-ध्वीजाएं
अब मुझे यह कविता ही नहीं मिल रही
शायद चली गई जहां ज़रूरत थी इसकी
उन लोगों के बीच
जिनके लिए लिखी गई
इधर कविता इतना तात्काहलिक मसला बन गई है
कि लगता है कवि इंतज़ार ही कर रहे थे
घटनाओं का
दंगों का
घोटालों का
बलात्का रों का
कृपया मेरी क्रूरता का बुरा मानें
मेरे कहे को अन्यतथा लें
मेरे भूल जाने के बीच याद रखने का कोलाहल है अगल-बगल
मुझे बुरा लगता है
जब कवि प्रतीक्षा करते हैं अपनी कविताओं के लिए
आन्दोिलनों का
ख़ुद उतर नहीं पड़ते
न उतरें सड़कों पर
पन्नोंं पर ही कुछ लिखें
फिर कविताओं में भी शान से दिखें
हिन्दीि कविता के
इस सुरक्षित उत्त र-काल में
मुझे माफ़ करना दोस्तों
मेरी ऐतिहासिक बेबसी है यह
कि मैं हर बार एक पुरानी कविता लिखता हूँ
और
बहुत जल्द भूल भी जाता हूँ उसे।