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मैं पृथ्वी का बना प्रियंकर / विंदा करंदीकर / निशिकान्त ठकार

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दफ़नाकर भगवी कफ़नी को
मैं पृथ्वी का बना प्रियंकर;
मिट्टी से कर मस्ती मैंने
अधर-क्षत आँका अवनी पर !

छायी मेरे नव स्पर्श से
पृथ्वी के गालों पर लाली;
उछल पड़ी उसके उर में से
सरसर धानों की हरियाली ।

साँसें उसकी गर्म पी गया
उपजे गाने उसी नशे में —
स्वर्ग यहीं या यहीं नरक है;
इसी जगह पर इस मिट्टी में !

धर्म छिपा कर संग पाप के;
मज़हब रोए गला फाड़कर।
दफ़नाकर भगवी कफ़नी को
मैं पृथ्वी का बना प्रियंकर !

मराठी भाषा से अनुवाद : निशिकान्त ठकार