भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं पृथ्वी को / मोहन सगोरिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देह एक पृथ्वी है
और रात-दिन घटक
जब दिन्होता है
तब रात नहीं

यह आधे भाग पर ही
सम्भव है एक समय में

मैं पृथ्वी को
देह बनाने की कोशिश में
पहले नींद और जगराते को
रात और दिन बना रहा हूँ।