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मैं प्यार करता हूँ इस देश की धरती से... / चन्द्र

Kavita Kosh से
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मैं प्यार करता हूँ इस देश की धरती से
इस देश की धरती के हरे भरे वनों, जँगलों से,
वनों-जँगलों में चहचहाने वाली तमाम चिड़ियों से,
इस देश की धरती के खेतों से
खेतों में खटने वाले वाले मज़दूर-किसानों से
मैं प्यार करता हूँ

मैं प्यार करता हूँ
जिनके हाथ श्रम के चट्टानों से रगड़-रगड़ा कर
लहूलुहान हो चुके हैं
जिनकी पीठ और पेट एक में सट चुके हैं
भूख व दुख से
मैं प्यार करता हूँ उनसे
जिनकी समूची देह
खतरनाक रोगों से कृषकाय बन चुकी है

मैं प्यार करता हूँ
मैं प्यार करता हू~म
इस कपिली नदी से
इस कपिली नदी के तट पर की बांस की झाड़ियों से
जिनसे हमारी घरों की नीव धँसी-बनी
जिस नदी के सहारे
मैं और मेरा गाँव और मेरे गाँव की तमाम खेती-बाड़ी
ज़िन्दा है

मैं प्यार करता हूँ
प्यार करता हूँ मैं
अपने हाथों के श्रम के धारे से

मैं प्यार करता हूँ
गाय, बैल, हल, हेंगा, जुआठ, खुरपी-कुदाल से
प्यार करता हूँ

मैं प्यार करता हूँ उनसे
जिनकी समूची देह श्रम के लोहे की छड़ों से
रूई-सी बुरी तरह से धुनी जा चुकी है

मैं प्यार करता हूँ....
प्यार करता हूँ मैं….
अपनी इस जर्जर देह से
जिसका अनमोल रतन दूहा जा चुका है !