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मैं फ़िरोज़ा, एक भारतीय लड़की / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

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हिन्दू भारत, जैन भारत, बौद्ध भारत, क्रिश्चियन भारत
इतने भारत के बीच खड़ी
मैं फिरोज़ा, एक भारतीय लड़की ।

आप लोग ही बताएँ मैंने क्या अपराध किया है?
पृथ्वी के जिस किसी भी देश में
दूसरी लड़कियों की तरह मैंने भी एक जन से
प्रेम किया था ।
पहली बार जिस दिन उसकी आँखों से मेरी आँखें मिलीं
मैं जानती नहीं थी वह कौन है
साँझ बेला कॉलेज कैम्पस में
जो उजाला उसके बालों में पड़ रहा था
उसमें कहीं भी उसका धर्म नहीं लिखा था ।

हिन्दू भारत, जैन भारत, बौद्ध भारत, क्रिश्चियन भारत
आप लोग ही बताएँ मैंने क्या अपराध किया है ?

मैं जिस दिन हाथ में मोमबत्ती लेकर खड़ी हुई
मैं जिस दिन बोल गई
मैं शरीयत नहीं मानती
मैंने जिस दिन समझा दिया भारतवर्ष की माटी को
माँ बोली, पता है, भारतवर्ष के आकाश का आकाश
उसी दिन से ही शुरू हुआ अत्याचार ।

हिन्दू भारत, जैन भारत, बौद्ध भारत, क्रिश्चियन भारत
आप लोग ही बताएँ मैंने क्या अपराध किया है ?
लड़का तो आप लोगों का ही है
उसका दोष क्या था ?
मुझे प्यार करना उसका दोष है यही न ?
लड़के की बाडी में आप लोगों ने पत्थर छोड़े
पार्सल की टूटी चट्टियाँ
उसे हाथ से मारा, भात से मारा
बाड़ी की दीवाल पर बड़ा-बड़ा लिख दिया
‘यह सब नहीं चलेगा’ ।

शर्म नहीं आती आप लोगों को, आप लोग आगे रहने वाले मानुष हैं
एम० ए० पास, बी० ए० पास, डॉक्टर, इंजीनियर, वक़ील
आप ही गणतन्त्र पर भाषण देते हैं
और प्रयोजन पड़ने पर
उसकी टूटी चाँप लेते हैं
धिक् है आप लोगों पर ।

मैंने क्या छुटपन में भोर उजाले में
सरस्वती पूजा के फल नहीं काटे ?
मैंने क्या स्कूली बरामदे में बैठकर
रात जागकर अल्पना नहीं दी ?
क्या मैंने पास वाली बाड़ी के हिन्दू बाबा को रक्त नहीं दिया ?
उनकी बाड़ी के आंगन में बैठ
उनके बच्चों को अ आ क ख नहीं सिखाया ?
मैंने अरबी नहीं सीखी, फ़ारसी नहीं सीखी, उर्दू भी नहीं सीखी
बांग्ला ही मेरी भाषा है, ये भाषा ही मेरा भात है, मेरी रोटी
मेरी आँख का काजल, मेरे पाँव का घुँघरू
यह भाषा ही मेरी गोपनीय चिट्ठियाँ हैं
जिन अक्षरों पर लगा है
मेरी आँख का पानी ।

हमने जिस दिन शादी की
उस दिन कॉफ़ी हाउस गए थे, और उसी दिन
मुझे झोला भरकर रवीन्द्रनाथ ने खरीद दिया था
हावड़ा स्टेशन पहुँचकर कानो-कान रवीन्द्रनाथ ने कहा था
फिरोजा, तुम ही मेरी मृन्मयी, तुम ही मेरी लावन्या
तुम ही मेरी सुचरिता ।

उस रात क्या हुआ नहीं जानती, क्या घटा उसकी बाड़ी में, क्या घटा था उनके पाड़े में,
क्या किया था उनका
बाबा – काका – वह मैं आज तक नहीं जानती
किन्तु उसके बाद वाले दिन उसे और कहीं खोजा नहीं जा पाया
वह कहाँ चला गया मैं नहीं जान पाई ।

यही है आप लोगों का भारतवर्ष ?
यही है हमारा भारतवर्ष ?
मैं एक साधारण लड़की
फिर भी बाड़ी में, पाड़ा में, ऑफ़िस में, पूजा पण्डालों में
शादी बाड़ी में, अन्नप्राशन में – अभी भी मुझे लेकर फिस्फास

डॉक्टर के यहाँ जाने पर – फिसफास
कॉलेज घुसने पर – फिसफास –
बाज़ार जाने पर – फिसफास
जिस हाउसिंग में रहती हूँ वहाँ भी चलती रहती है अविराम लुका-छिपी
वह लुका-छिपी नहीं, वह फिसफास नहीं
वह है आप लोगों के भीतर बहुत गहरे छिपा हुआ एक-एक
सुप्त गुजरात
अगर आपने अपना हृदय
बड़ा नहीं किया
अगर आकाश की ओर नहीं ताका
इस जले हुए देश में और, और, और
बहुत से जले हुए गुजरात तैयार होंगे ।

मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर