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मैं फिर उठती हूँ / माया एंजलो

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तुम दर्ज कर सकते हो मुझे इतिहास में
अपने कड़वे और विद्रूप झूठ के साथ
कुचल सकते हो मुझे
इसी गन्दगी में
परन्तु फिर भी, धूल की तरह, मैं उठूँगी।

क्या तुम मेरे अक्खड़पन से परेशान हो?
तुम इतने निराश क्यों हो?
क्या इसलिए कि मैं चलती हूँ इस तरह
मानों तेल के कुँए हों
मेरी बैठक में।

चन्द्रमाओं और सूर्यों की तरह
ज्वार भाटों की निश्चितता के साथ
ऊपर उठती उम्मीद की तरह
मैं फिर उठूँगी।

क्या तुम मुझे टूटा हुआ देखना चाहते थे?
झुका हुआ सिर और झुकी नज़रें?
नीचे गिरे कन्धे, आँसुओं की तरह …
अपने रुदन में कमज़ोर ।

क्या मेरी हेकड़ी से तुम्हे चोट पहुँचती है ?
क्या बहुत बुरा लगता है?
क्योंकि मैं हँसती हूँ जैसे मेरे पास
सोने की खदाने हों
घर के पिछवाड़े।

अपने शब्दों से तुम मुझे शूट कर सकते हो
काट सकते हो अपनी नज़रों से
मार सकते हो मुझे अपनी घृणा से
पर फिर भी, हवा की तरह
मैं उठूँगी ।

क्या मेरा कामाकर्षण तुम्हे विचलित करता है?
क्या यह एक विस्मय की तरह
तुम्हारे सामने आता है
कि मैं नृत्य करती हूँ
जैसे मेरे पास हीरे हैं
जहाँ मिलती हैं मेरी दोनों जाँघे?

इतिहास की शर्म वाली झोंपड़ियों से बाहर निकलकर
मैं उठती हूँ
उस अतीत से ऊपर
जिसकी जड़ें दर्द से वाबस्ता हैं
मैं उठती हूँ …
मैं एक काला समुद्र हूँ
उछलता–कूदता
बहता–उफनता
अपने भीतर लहरों को समाए।

भय और आतंक की रातों को पीछे छोड़ते हुए
मैं उठती हूँ
लाती हूँ
वे तमाम तोहफ़े जो मेरे पूर्वजों ने दिए थे
मैं एक स्वप्न हूँ
और एक उम्मीद गुलामों की
मैं उठती हूँ
मैं उठती हूँ
मैं उठती हूँ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन