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मैं बस्ती हो जाने तक / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
मैं बस्ती हो जाने तक
पहुँचा हूँ वीराने तक
फर्ज़ अदा हो आने तक
जिंदा हूँ मर जाने तक
मैंने ख़ुद को ढूँढ़ा है
ख़ुद में गुम हो जाने तक
मेरा चर्चा तुझ-मुझ से
पहुँचा एक ज़माने तक
इस महफिल में रहना है
अपना साथ निभाने तक