Last modified on 12 फ़रवरी 2017, at 10:23

मैं बागी हो गई हूँ / देवी नांगरानी

किसने मांगी थी तुमसे रिहाई
तुम्हारी चारदीवारी की बेड़ियों में
मैं खुश थी,
दुखी तब हुई जब
तुमने उन बेड़ियों को कसकर
गुलामी की जंजीरें
बनाने का यत्न किया।
मन से मानी हुई
गुलामी की आजादी अच्छी लगी
पर थोपी हुई परिधियों में
तुम्हारा इस तरह कसना बुरा लगा
इसीलिए मैं बागी हो गई हूँ