भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं बिरहणि बैठी जागूं जगत सब सोवे री आली / मीराबाई
Kavita Kosh से
राग बागेश्री
मैं बिरहणि बैठी जागूं जगत सब सोवे री आली॥
बिरहणी बैठी रंगमहल में, मोतियन की लड़ पोवै|
इक बिहरणि हम ऐसी देखी, अंसुवन की माला पोवै॥
तारा गिण गिण रैण बिहानी , सुख की घड़ी कब आवै।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जब मोहि दरस दिखावै॥
शब्दार्थ :- बिरहणी =विरहनी। पोवै =गूंथती है। रैण =रात। बिहानी = बीत गयी।