मैं बीमार हूँ / अरुण देव
रस्ते में एक मासूम से लड़के को कुछ लोग
रस्सियों से बाँध मारे जा रहे थे
वह बार-बार कह रहा था मेरा कसूर तो बताया जाए
मैंने सुबह ही बी०पी० चेक किया था नार्मल निकला
एक बच्ची भागी-भागी आई लिपट गई मेरे पैरों से
रिस रहा था उससे ख़ून
गहरी लकीरें थीं उसके चेहरे पर
उसका पीछा करने वाले दिख नहीं रहे थे
वह किसी अदृश्य से डर रही थी
और काँप रही थी
उसका चाचा उसे घसीटते हुए ले गया
कुछ दिन पहले ब्लड टेस्ट करवाया था लौह तत्व भरपूर है ख़ून में
बिखर से गए घर के दरवाज़े पर झिलगी खटिया पर जर्जर वृद्ध ने
तरल-सी सब्ज़ी में रोटी तोड़ते हुए कहा
बेटा, आओ, खा लो
फिर वह कहीं डूब गया अपने में
मेरा पाचनतन्त्र ठीक है, जो कुछ भी खाता हूँ, पच जाता है
नुक्कड़ पर एक बड़े से चमकदार झूठ के आसपास
तमाम सच्चाईयों के कन्धे झुके हुए मुझे मिले
बन्धे थे उनके हाथ ख़ुद से
शुगर ठीक है मेरा, इसे कण्ट्रोल में रखना है
भागा जा रहा था एक युवा
उसके पीठ पर कोड़े की मार के उभार दिख रहे थे
छिल गई थी पूरी पीठ रक्त बह कर वहीँ जम गया था
उसे कोई नौकरी चाहिये होगी
मैंने देख लिए उसके गुम चोट
मेरी आँखों का लेंस उम्र के हिसाब से ठीक है
पर दूरदृष्टि ख़राब हो चली है
यह कोई बड़ी बात नहीं, क्या कीजिएगा दूर तक देखकर
— डॉक्टर ने कहा
पैथालोजी में कोलेस्ट्राल के टेस्ट की रिपोर्ट देख रहा था
एक फीकी-सी युवा स्त्री
पूछ रही थी कि उसके पति के हर्ट अटैक की आशंका चेकअप में क्यों नहीं दिखी थी
जब बचना असम्भव था
क्यों आई०सी०यू० में उन्हें इतने दिनों तक रखा गया
कहाँ से भरेगी वह यह कर्ज़
एच०डी०एल० सही निकला एल०डी०एल० कम हो रहा है
सगीर ने कहा भाईजान अब घूमने टहलने की हिम्मत न रही
क्या रखा है मेल मुलकात में
मैंने अपने घुटने देखे ठीक हैं दोनों
पर इधर रीढ़ झुकती जा रही है
और तनकर कर खड़े होने की हिम्मत छूटती जा रही है
अब तो किसी पर तमतमाता भी नहीं हूँ
ठीक हूँ मैं
वैसे
तो ।