मैं बुझे चाँद सा
अंधेरे में छिपा हुआ बैठा था
सब रागिनियाँ डूब चुकी थीं
प्रलय निशा में
तभी जगे तुम
दूर सिंधु के जल में झलमल
और बांसुरी ऐसी फूँकी
अंधकार को फाँक फाँक में चीर चीर कर
सातों सुर बज उठे
सात रंगो वाले
बुझे चाँद में एक एक कर
सभी कलाएँ थिरक उठीं ।