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मैं बैठ्या खेत के डोले पै / हरियाणवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मैं बैठ्या खेत कै डोले पै

कित जासै सिखर दुपहरै नै ?

मेरी जान कालजा खटकै

मत जाइए जी, जी भटकै

लिए देख चार घड़ी डटके

खसबू आरई फूल झारे मैं ।


भावार्थ

--'मैं खेत की मेंड़ पर बैठा हूँ, इस प्रखर दोपहरी में तू कहाँ जा रही है । प्रिय, मेरा हृदय धड़क रहा है । तू

मत जा । मेरा मन भटकता है । चार क्षण के लिए यहाँ खड़ी हो जा । देख, फूल झर रहे हैं और उनकी सुगन्ध

फैल रही है ।