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मैं भावुकता को प्यार नहीं मानूँगा / बलबीर सिंह 'रंग'

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मैं भावुकता को प्यार नहीं मानूँगा,
मैं लहरों को मंझधार नहीं मानूँगा।

भावुकता का परिणाम क्षणिक हाता है,
लहरों का विकल विराम क्षणिक होता है,
मलियानिल की मंथर गति के स्वागत में-
विटपों का मौन प्रणाम क्षणिक होता है।
तुम क्षणिक-मिलन को चाहे जो कुछ समझो,
मैं दर्शन को अभिसार नहीं मानूँगा।
मैं भावुकता...

मैं करूँ कल्पनाओं की विकसित कलियाँ,
तुम भरो भावनाओं की मधुमय गलियाँ,
मैं धरती पर नभ की नीरवता ला दूँ-
तुम नित्य मनाओ तारों से रंगरलियाँ।
तुम कहो सफलता को अपनी अन्तिम जय,
मैं असफलता को हार नहीं मानूँगा।
मैं भावुकता...

रवि-शशि भी मेरी भाँति न जल पाते हैं,
सुख दुःख भी मेरे साथ न चल पाते हैं,
पथ की ऊँची-नीची बाधाओं में भी-
गिरकर मेरे अरमान सँभल जाते हैं।
अवलम्ब किसी का मिले न मुझको फिर भी,
मैं आश्रय को आधार नहीं मानूँगा।
मैं भावुकता...