भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं भी इस देश की नागरिक हूँ / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
मैं भी
इस देश की
नागरिक हूँ
मै भी जीना चाहती हूँ
इस देश पर
गर्व करना चाहती हूँ
मगर मेरा सिर
झुका रहता है
अपने ही शरीर के बोझ से
दबी, सहमी
जिन्दगी के दिन गिनती हूँ
मानो उधार में
मिली हैं सांसें मुझे
मेरी भ्रूण हत्या
नहीं हो पायी
बची तो पाली गयी
कन्यादान के लिए
यूंही दान में भी
कोई नहीं लेता
सौ - सौ नखरे दिखा
भलीभाँति ठोक बजा
ढेरों उपहार व रूपयों का
मुआवजा ले
ले जाता है मुझे
तन-मन-धन से
अपने होने का ऋण चुकाती हूँ
फिर भी
और-और की लिप्सा में
अकसर जलायी जाती हूँ
मेरा होना हादसा
मेरा न होना हादसा
आपने ठिक पहचाना
मैं नारी हूँ
भारतीय नारी
मैं भी
आपके स्वर में स्वर मिला कर
कहना चाहती हूँ
मेरा भारत महान