मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ / शैलेन्द्र सिंह दूहन
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ,
जनता को भरमा सकता हूँ।
झूठे-सच्चे वादे कर के
गंगा-यमुना घर में भर के,
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों पे
जन-जन को भड़का सकता हूँ।
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ।
भूखों की बस्ती जलवा के
लाशों से ही जय बुलवा के,
अपनी सारी मनमानी को
अच्छे दिन बतला सकता हूँ।
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ।
बापू वाला चरखा लेकर
बापू को ही गाली देकर,
चमचे माइक माला हो तो
दुखियों को समझा सकता हूँ।
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ।
कुत्तों की ज्यों पूँछ हिला कर
भाषण में ही शोर मचा कर,
ढोंगी बाबाओं के चिमटे
संसद में खड़का सकता हूँ।
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ।
अरबों के घोटाले क्या हैं?
सड़कें पर्वत नाले क्या हैं?
पेट भरों का ताऊ हूँ मैं
सारे जग को खा सकता हूँ।
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ।
बन्दर से ज्यादा उछलूँगा
पल में लाखों दल बदलूँगा,
गलती से भी जेल गया तो
सरकारेँ बनवा सकता हूँ।
मैं भी कुर्सी पा सकता हूँ।