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मैं भी तो देखूँ / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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मैं भी तो देखूँ कब तक तुम
यों पाषाण समान रहोगे।

माना मेरा तुम पर कोई
किसी तरह का जोर नहीं है;
पर मेरी वंदना-अर्चना
का भी कोई छोर नहीं है।

आज नहीं तो कल तुम मेरे
आँसू की मुसकान बनोगे॥1॥

भूल हुई मुझसे जितनी उन
से इन्कार नहीं करता हूँ;
हाड़-माँस के तन की-
दुर्बलता स्वीकार सदा करता हूँ।

पर मानव की शक्ति कभी तो
तुम मुझमें पहचान सकोगे॥2॥

कोई मंदिर, कोई मस्जिद,
कोई गिरिजाघर, गुरुद्वारे;
अपने-अपने नियम धरम को
जाते प्रतिदिन साँझ-सकारे।

पर मेरे तो तुम्हीं एक दिन
धरम-करम-ईमान बनोगे॥3॥

बोलो तो भी ठीक, न बोलो
तो भी ठीक मुझे लगता है;
मेरा मन तो भीतर भीतर
मुझसे यह कहता रहता है।

अभिशापित इस जीवन के तुम
ही मंगल वरदान बनोगे॥4॥

मेरी पूजा और प्रार्थना-
भजन-भाव-विश्वास-भावना-
गीत-ताल-लय-छंद-राग-स्वर
आराधन-आरती-साधना-

में होगी यदि शक्ति, कभी तो
तुम मेरे भगवान बनोगे॥5॥

8.9.58