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मैं भूल गया हूँ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मैं भूल गया हूँ पृथ्वी तुम्हें
अब मेरे पाँव तुम पर नहीं पड़ते
तरस गयी हैं मेरी आँखें
तुम्हारी सुगंधित मिट्टी देखे बिना
दूर हो गया है यह सूर्य
दिखलाई नहीं देता मुझे
जिसका उदय और अस्त होना,
बैठा रहता हूँ घण्टोंझ - घण्टोंत भर
इस व्यवसाय की कुर्सी में
और देखता रहता हूँ मेज को
जिससे उठकर कागज पर कागज
चिपकते जाते हैं मेरे चेहरे पर
और इस कलम से किये गये हस्ताक्षर
महसूस कराते हैं मेरी मौजूदगी भर।