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मैं भूल जाना चाहता हूँ / असंगघोष
Kavita Kosh से
सचमुच
इस दोराहे पर
अब और ज्यादा देर
यहाँ खड़ा नहीं रह सकता
मैं जानता हूँ यह भी
होते हुए दुर्गम रास्तों से
यहाँ तक पहुँचने में
तुम्हारे साथ
वक्त कैसे कटा
पता ही नहीं चला
अकेले में
राह और भी कठिन होगी
किन्तु
अब सचमुच
साथ न रहेगा
इस विश्वास के साथ
कहना चाहता हूँ
कि यहाँ तक पहुँचने में बिताए
सुखद पल
होंगे
मेरे बहते आँसुओं के साथ
खट्टी-मीठी यादों
अच्छे-बुरे अहसासों के सहारे
गुजार लूँगा बची जिन्दगी
पहुँच जाऊँगा
अपने अंतिम मुकाम पर
हाँ!
सचमुच
अब मैं
अपने नीड़ में जाकर
भूल जाना चाहता हूँ
उन पलों को,
यादों को
जो मुझे बनाी हैं कमजोर
जो कि कतई नहीं हूँ मैं।