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मैं माटी महतारी अँव / पीसी लाल यादव

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जतन करव धरती के संगी, जतन करव रे।
जतन करव भुईंया के संगी, जतन करव रे॥
मोर जतन करव रे, मैं माटी महतारी अँव
सुख-दुख के संग देवइया, संगवारी

तुँहर अँगना म ठाढ़े
जनम के भूखे-पियासे।
अपन तन के पछीना दे दव
मोर मन गद-गद हाँसे॥
तुँहर हँडा-बसनी मैं, सरग के दुवारी अँव।
मैं माटी-महतारी अँव॥

अपन आँखी के आँसू ल
तुमन मोला दे दव।
मोर होंठ के हाँसी ल
तुमन चुप्पे ले लव॥
तुँहर आँखी के सपना, मैं सोनहा थारी अँव।
मैं माटी महतारी अँव।

तुँहर सपना के डार म
करम फुलवारी फुलही।
काबर कखरो आगू म?
हाथ लमाये ल परही॥
देवारी के दिया मैं, फागुन के पिचकारी अँव।
मैं माटी महतारी अँव॥