मैं मुस्कुराता हूँ /जलज कुमार अनुपम
कई दफा अपनों से छुपता हूँ
छुपाता हूँ
मैं मुस्कुराता हूँ
जब कोई पहेली सुलझ जाती है
या कोई रुठा अपना मान जाता है
मैं मुस्कुराता हूँ
जब कोई जीतता है अपना
या ऐसा कोई जिससे मुझे लगाव है
मैं मुस्कुराता हूँ
खुशी को नहीं तौलता बटखरे से
सबको जीता जाता हूँ
मैं मुस्कुराता हूँ
प्रारब्ध की गति नहीं मालूम मुझे
फिर भी सबको गले लगाता हूँ
मैं मुस्कुराता हूँ
नहीं मानता अच्छे और बुरे दौर को
रात के बाद दिन का आना तय है
यह सोच के इतराता हूँ
मैं मुस्कुराता हूँ
जब देखता हूँ गाँव से शहर भागते
और फिर लौटते कुछ को जड़ की ओर
मैं मुस्कुराता हूँ
विज्ञान की प्रगति देख अच्छा लगता है
फिर जब उसको प्रकृति के सामने लाचार पाता हूँ
मैं मुस्कुराता हूँ
जब कभी देखता हूँ
पापा की आँखों में गर्व के आँसू
माँ की आँखों में हरपल मेरे लिए प्यार
और पत्नी की आँखों में कुछ आशा, कुछ चिंता
मैं मुस्कुराता हूँ।