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मैं मोहब्बत का चलन क्यों भूलूं / आनंद कुमार द्विवेदी
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तेरे मदहोश नयन क्यों भूलूँ
तेरा चंदन सा बदन क्यों भूलूँ
तू मुझे भूल जा तेरी फितरत
मैं तुझे मेरे सनम क्यों भूलूँ
जिस्म से रूह तक उतर आई
तेरे होंठों की तपन क्यों भूलूँ
आज खारों पे शब कटी लेकिन
कल के फूलों की छुवन क्यों भूलूँ
तुझसे नाहक वफ़ा की आस करूँ
मैं मोहब्बत का चलन क्यों भूलूँ
बन के खुशबू तू बस गया दिल में
अपने अन्दर का चमन क्यों भूलूँ
कितनी शिद्दत से मिला था मुझसे
मैं वो रूहों का मिलन क्यों भूलूँ
ख़ाक होना है मुकद्दर मेरा
तूने बक्शी है जलन क्यों भूलूँ