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मैं मौसमों की मसाफ़त का दास्तांगो हूँ / शीन काफ़ निज़ाम
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मैं मौसम की मसाफ़त का दास्तांगो हूँ
उफ़ुक़ उफ़ुक़ से मगर फूटता फ़साना वो
वही तो है मुझे क़िस्तों में काटने वाला
मैं एक जू ए रवाँ हूँ मिरा ज़माना वो
हमारे रिश्तों को समझे तो कोई क्या समझे
मैं उस की ठौर हूँ और है मिरा ठिकाना वो
पुराने ज़ख़्म कई दिल में टीस बन के उठे
नए सफ़र प' हुआ जब कभी रवाना वो
दयारे हिज्र के जलते उमसते लम्हों में
घटा है याद तो बरसात का बहाना वो
किसी का कुछ नहीं हो कर भी सब का सब कुछ था
नदी के पार जो इक पेड़ था पुराना वो