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मैं याद रखूँगा / मंगलमूर्ति

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यात्रा पर निकलने से पहले मैं याद रखूँगा
अपना सामान सहेजते वक्त
कुछ थोड़ी सी बहुत ज़रूरी चीज़ें
जिन्हें मैं साथ ले जाना चाहूँगा
अपनी पीठ पर ढोते हुए

कुछ ऐसी चीजें, बेशकीमती,
जैसे एक मरा हुआ सच
जो अब सड़कर दुर्गंधित होगा
या एक न्याय जिसका बेरहमी से
गला घोंटा गया हो
या वह विश्वास जिसकी पीठ में
घोंपा गया हो एक लंबा ख़ंज़र
या अपना आत्म-सम्मान जिसको
साना गया हो कीचड़ में
या वह सौहार्द जिसके साथ हुआ हो
सामूहिक बलात्कार

इन सब को समेटना होगा मुझे
अपने साथ ले जाने वाले -
पीठ पर ढोकर ले जाने वाले -
मोटे चमड़े के बने झोले में
बहुत एहतियात से, संभाल कर
क्योंकि सफर भी तो होगा
मीलों दूर का, मंज़िल भी तो होगी
क्षितिज के उस पार की

एक ऐसा आख़िरी सफ़र
एक ऐसी मंज़िल जहाँ मिलना होगा
उस बूढ़े बुज़ुर्ग इंसाफ़ के बंदे से
जिसे इंतज़ार होगा इस सारे सामान का
इस मरे हुए सच का
या इस अधमरे न्याय का
या इस लहूलुहान विश्वास का
या इस कीचड़ में सने आत्म-विश्वास का
या इस बुरी तरह क्षत-विक्षत सौहार्द का

बहुत ज़रूरत होगी उसको
इस तरह के घायल,टूटे-फूटे सामान की
जो नहीं मिलते उसके शहर में कहीं
और जिन्हें वह बहुत हिफ़ाज़त से
संभाल कर रफ़ू करेगा उनके घाव

इसीलिए मुझको ख़त भेज कर
मांगी हैं ये ज़रूरी रिसते दर्द की चीज़ें
उस बूढ़े बुज़ुर्ग ने मुझसे
क्योंकि उसके यहाँ
नहीं मिलती ये घायल क्षत- विक्षत चीज़ें

और मुझे लेकर जाना है
उसके शहर में ख़ास उसके लिए
यह सारा टूटा-फूटा ज़रूरी सामान
अपनी पीठ पर ढोकर...