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मैं रसगुल्ला / बालकृष्ण गर्ग
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मैं रसगुल्ला; खुल्लमखुल्ला-
खाते पंडित, खाते मुल्ला।
देख-देख सब ललचाते हैं,
लार जीभ से टपकाते हैं,
छीना-झपटी भी हो जाती,
जो ले ले, मैं उसका साथी।
घर में जिस दिन मैं आ जाता,
मच जाता है हल्ला-गुल्ला।
मैं रसगुल्ला
[साप्ताहिक हिन्दुस्तार, 19 अप्रैल 1981]