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मैं रिवायत हूँ एक भूली हुई / शाइस्ता यूसुफ़
Kavita Kosh से
मैं रिवायत हूँ एक भूली हुई
और तू जिद्दतों में रहता है
मेरी आँखें सवाल करती हैं
क्या ख़ुदा मंज़रों में रहता है
साअतें रक़्स कर रही हैं मगर
मेरा दिल उलझनों में रहता है
परचम-ए-जंग झुक गया लेकिन
वस्वसा सा दिलों में रहता है
गो चराग़ाँ किए गऐ ख़ेमे
पर अँधेरा दिलों में रहता है
आओ मौजों से पूछ कर आएँ
चाँद किन साहिलों में रहता है