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मैं लिखती हूँ कभी कुछ / अर्चना जौहरी

मैं लिखती हूँ कभी कुछ तो कभी कुछ गुनगुनाती हूँ
समझ लो दोस्तो इतना मैं ज़िंदा हूँ बताती हूँ

अभी भी दिल धड़कता है तुम्हें जब सोचती हूँ मैं
मैं पत्थर बन नहीं पाई अभी भी सुगबुगाती हूँ

सभी मशगूल ख़ुद में हैं ख़बर अपनो की कैसे ले
उतर कर गीत ग़ज़लों में ख़बर अपनी सुनाती हूँ

कभी सहमे हुए सपने कभी उम्मीद के दीपक
इसी से मैं कभी बुझती कभी मैं जगमगाती हूँ

कभी मैं धूप-सी खिलती अंधेरों में कभी घिरती
कोई भी रंग हो मैं जश्न जीवन का मनाती हूँ