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मैं लिखती हूँ / इब्तिसाम बरकत
Kavita Kosh से
मैं लिखती हूँ
क्योंकि मेरा दिल
एक मुल्क बन चुका है
और मैं चाहती हूँ कि तमाम लोग
इसमें आकर रहें ।
मैं जगह बनाती हूँ
सारे कोनों को
खाली करती हूँ
भय से ।
मैं सुकून बनाती हूँ
बनाती हूँ
एक कप चाय
अपनी और तुम्हारी कहानी के लिए ।
एक कप चाय
हमारे विलगित इतिहासों के लिए
जो आते हैं
एक ही परिवार से
परन्तु एक दूसरे से
बातचीत नहीं करते ।
गर्म चाय और मिंट
मेरी इच्छा है
कि तुम्हें आमन्त्रित करूँ
अपने दिल में ।
क्या आप चाय में
शक्कर लेना पसन्द करेंगे ?
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन मेहता