मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे पल्लू की छुवन
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारी बोरसी की आँच
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियाँ
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हरा चटखा चश्मा
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे फूँक की गर्मी
जब सर्दी से घड़-घड़ चलती
मेरी साँसे सुन कर
तुम रात भर
कलाम पाक पढ़ कर फूँकती थीं।
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे हाथों की गर्मी
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारी जली उँगलियाँ
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारी पथराई आँखें
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे दिल की धक्-धक्
मैं लिखना चाहता हूँ
तुम्हारी तिलिस्मी हँसी
जो मेरे अटपटे सवालों पर
तुम्हारे चेहरे पे उभरती थी
और तुम मुझे थपथपा कर
गोद में छुपा लेती थीं।
मैं लिखना चाहता हूँ
सब कुछ आदि से अन्त तक
क्या मेरी क़लम में इतनी स्याही होगी?
क्या लिख पाऊँगा इस जनम वो सब कुछ?
क्या मेरी भाषा में इतने शब्द होंगे
कि दर्ज कर पाऊँ सब कुछ?
विनती करूँगा अपनी भाषा से
माँगूँगा कुछ नए शब्द
ताकि लिख पाऊँ इस जन्म में तुम्हारे लिए
एक कविता
जिसे तुम अल्बम की तस्वीरों की तरह
उलटती-पलटती रहो उस दिन तक
जब तक कि मैं भी
तुम्हारे पास नहीं आ जाता
तुम्हारी कहानियाँ सुनने
तुम्हारे साथ भचर-भचर करने
तुम्हारे पहलू में सिर रख
एक अनन्त युग तक
सो जाने के लिए।
(रचनाकाल: 2016)