मैं लौट आऊँगा पास तुम्हारा / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'
एक वक्त में ध्रुव तारे का पर्यायवाची शब्द हुआ
करता था में तुम्हारे लिए
पर वक्त के साथ बदलने लगे थे मेरे नाम
हाशिये पर फिसलते हुए
ढलान का अनुमान करने की दक्षता थी मेरी
मेरी चेतनता ने जिंदा रहकर मुझे दिलाया था भविष्य का आभास
लेकिन असहाय होकर इस तरह बीत जाऊँगा जैसे बीत जाता हैं
न लौटने वाला वक्त,
क्षमा याचना जैसे शब्द बन चुके थे
मेरी निष्प्रयोज्य ढाल
फिर प्रार्थनाओं में लेने लगता था
ईश्वर के साथ-साथ तुम्हारा नाम
फिर तुम्हारे नाम को दबे होठो से ऐसे बुदबुदाना जैसे
कोई फूंक रहा हो प्राण,निर्जीव हो चुके रिश्तो में
लेकिन मुझे बिता हुँआ कल मानकर नया इतिहास गढ़ने में तुम्हारे शोध और मेरे समर्पण के बीच
चलता रहा एक प्रकार का आखेट ,
मुझ पर हमेशा लगते रहे अनजान होने के आरोप
हमेशा से अभिशप्त ही रहा में तुम्हारे लिए
वैसे भी सब कुछ तुम्हारे पक्ष में ही था,
यँहा तक की समय भी हाथ बंधे खड़ा रहता
द्वार पर तूम्हारे
तुम मेरे साथ पूरे मनोयोग से खेल रही थी
भूलभुलैया वाला खेल
इधर में अनगिनत टुकड़ो में टूटा हुँआ भी
गुनगुनाता रहा प्रेम गीत,
जिसको तुमने हमेशा सुनकर अनसुना किया ,
अब मेरे कानों में आने लगी है
मुझ पर अट्टाहस करती ध्वनियां!
लेकिन पराजय को स्वीकार करने तक
मुझे भूल पाना असम्भव होगा तुम्हारे लिए
मैं लौट आऊँगा आने वाले किसी पल में पास तुम्हारे!!