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मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
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मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला
तू मगर कौन सा बादल है बरसने वाला
संग बन जाने के आदाब सिखाए मैं ने
दिल अजब-ग़ुँचा-ए-नौ-रस था बकसने वाला
हुस्न वो टूटता नश्शा के मोहब्बत माँगे
ख़ून रोता है मेरे हाल पे हँसने वाला
रंज ये है के हुनर-मंद बहुत हैं हम भी
वरना वो शोला-ए-इसयाँ था झुलसने वाला
वो ख़ुदा है तू मेरी रूह में इक़रार करे
क्यूँ परेशान करे दूर का बसने वाला