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मैं विभा की एक नन्ही सी किरन हूँ / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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मैं विभा की एक नन्हीं सी किरन हूँ॥

सोचती हूँ है गहन कितना अँधेरा
काट दूँ कैसे अमावस हो सवेरा।
यामिनी का घोर तम मुझ को डराता
टूट पायेगा न पर संकल्प मेरा।

क्योंकि मैं संकल्प की बदली सघन हूँ।
मैं विभा की एक नन्ही सी किरन हूँ॥

विघ्न बाधा रोकती है पंथ तो क्या
विजय का कोई नहीं है मंत्र तो क्या ?
जीत ही लूँगी रुकावट - राज्य सारे
साथ है जय का नहीं अनुबंध तो क्या ?

नहीं जो रुकती कहीं मैं वो पवन हूँ।
मैं विभा की एक नन्ही सी किरन हूँ॥

हैं नहीं शत दीप करने को उजेरा
द्वार पर फैला रही रजनी अँधेरा।
एक नन्हा दीप मेरी आस्था का
काट देगा कालिमा का बन्द घेरा।

नापने जग को उठा वामन - चरण हूँ।
मैं विभा की एक नन्हीं सी किरण हूँ॥