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मैं सपने देखती हूँ / मंजुला सक्सेना
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मैं सपने देखती हूँ इस जहाँ में
कोई ऐसा छोर होगा
जहाँ न भीड़ होगी और न ही शोर होगा ।
मधुर एकान्त होगा और निर्भय शान्ति होगी
न होगी भूख और न प्यास होगी
न तू होगा न मैं
न ही कोई संवाद होगा
धरा निशब्द होगी और गगन भी मौन होगा ।
रचनाकाल : 25 फ़रवरी 2009