मैं समझता था तेरे दिल में उतर जाऊंगा
क्या पता था इसी में डूब के मर जाऊंगा।
तेरा होकर भी तेरे पास नहीं रुक सकता
मैं हवा हूँ तिरी सांसों की बिख़र जाऊंगा।
कितनी ठंडक है तेरे इश्क़ में तू क्या जाने
आग का दरिया भी गर हो तो गुज़र जाऊंगा।
मैंने माना वहां से कोई नहीं लौटा है
फिर भी छूने उसी सूरज को मगर जाऊंगा।
ज़िन्दगी कैसे मेरी बिगड़ी न पूछो मुझसे
तुम अगर हाथ से छू दो तो सँवर जाऊंगा।
माँ क़सम मुझको तो मालूम है औक़ात मिरी
यूँ करोगे मिरी तारीफ तो डर जाऊंगा।
हर तरफ तेरे ही चर्चे हैं तिरे ही जलवे
अब न चाहूँ जो तुझको मैं तो किधर जाऊंगा।