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मैं सरनामी हूँ / अमर सिंह रमण

कलकत्ते से पुरखे आए डिपु में नाम लिखाय के
सूरीनाम में डेरा डाला जात पाँत लुकुवाय के।
इसी देश में गद-गढ़ गए खून-पसीने बहाय के।
अब तो मेरा देश यही है कहूँ मैं गोहराय के
मुझे कोई परेदेशी बोला मारूँगा ढेला बहाय के।
भारती कुरता पहन लिया हूँ इंग्लिस्तानी पायजामा सिलाय के
सबके बीच घूम रहा हूँ सरनामी चमोटी लगाय के।
यहीं पढ़ना लिखना अपना यहीं का दाना पानी है
यहीं पे बचपन खेीला कूदा अब तो आई जवानी है।
इस धरती की शान बढ़ाऊँगा सारी शक्ति लगाय के
मैं तो हमेशा यहीं रहूँगा सरनामी जनता कहाय के।