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मैं सोचने का तरीक़ा बदल भी सकता हूँ / रविकांत अनमोल

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मैं सोचने का तरीक़ा बदल भी सकता हूँ
जो ढाले तू किसी सांचे में ढल भी सकता हूँ

जो तू कहे तो तिरे साथ चल भी सकता हूँ
मैं तेरी राह में दीपक सा जल भी सकता हूँ

तुम्हारे साथ चला जा रहा हूँ मर्ज़ी से
मैं अपने दौर से आगे निकल भी सकता हूँ

सलाहियत ये अज़ल ही से है निहां मुझमें
मैं उड़ भी सकता हँ पानी पे चल भी सकता हूँ

ख़ुदा नहीं हूँ मगर मैं खुदा से कम भी नहीं
मैं गिर भी सकता हूँ गिर कर संभल भी सकता हूँ