भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं स्याम-स्याम सखि! गाऊँगी / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग बसन्त-बहार, कहरवा 26.8.1974

मैं स्याम-स्याम सखि गाऊँगी।
स्यामहि पिता स्याम ही माता, स्यामहि सखा बनाऊँगी।
स्यामहि मेरे प्यारे प्रीतम, मैं उनके स्नेह समाऊँगी॥1॥
स्यामहि मेरे भोग-जोग सखि! स्यामहिकों नित ध्याऊँगी॥2॥
स्याम-सुधा की प्यास लगी सखि! ताहीसों रस पाऊँगी।
स्याम-दरस बिनु वृथा नयन ये, ललकि-ललकि रह जाऊँगी॥3॥
स्यामहि मेरो तन-मन सजनी! स्यामहि हिये बसाऊँगी।
स्यामहि मेरो जीवन, कैसे स्याम बिना रह पाऊँगी॥4॥
स्याम-पिया की सहज प्रिया मैं, स्याम-प्रीति रस पाऊँगी।
स्याम-मोहिता स्याम-लोभिता, स्यामहि माहिं समाऊँगी॥5॥