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मैं स्वयं को वार कर / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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सत्य को स्वीकार कर, परंपरा को प्यार कर
विजय की घोषणा किए, मैं स्वयं का शीश वार कर...

धर्मयुद्ध में खड़ी, अनीतियों से जा लड़ी
निडर बनी डटी रही, गांडिव लिये संभालकर
मैं स्वयं को वार कर...

मुखर कर अपनी चेतना, बिसारे अंतर्वेदना
बस एक लक्ष्य भेदना, मतस्य चक्षु साधकर
मैं स्वयं को वार कर...

न मिथ्य के प्रहार से, परिधि के आधार से
बंधी समय की धार से, माँ भारती से प्यार कर
मैं स्वयं को वार कर....

शुरूआत स्वयं से मैं करूँ, विसंगती से न डरूँ
हरेक चेतना की लौ से, प्रज्जवित मशाल कर
मैं स्वयं को वार कर...

जो सत्तारुढ़ हैं खड़े, बता क्या वश में न तेरे
क्यूँ भ्रष्ट तंत्र से घिरे, तू स्वर्णयुग आधार धर
हाँ स्वयं को वार कर...

हमसे ही ग्राम, देश है, संकल्प यह विशेष है
जन-जागृति उद्देश्य है, ये राष्ट्रहित सवाल पर
हाँ, स्वयं को वार कर...

इस देश का उत्थान हो, जो स्वयं में आत्मज्ञान
हो
एक क्रांति से विहान हो, चल ज्योतिर्मय विचार
कर
हाँ स्वयं को वार कर...