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मैं हरि बिन क्यों जिऊं री माइ / मीराबाई

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राग भैरवी


मैं हरि बिन क्यों जिऊं री माइ॥

पिव कारण बौरी भई, ज्यूं काठहि घुन खाइ॥
ओखद मूल न संचरै, मोहि लाग्यो बौराइ॥

कमठ दादुर बसत जल में जलहि ते उपजाइ।
मीन जल के बीछुरे तन तलफि करि मरि जाइ॥

पिव ढूंढण बन बन गई, कहुं मुरली धुनि पाइ।
मीरा के प्रभु लाल गिरधर मिलि गये सुखदाइ॥

शब्दार्थ :- ओषद = औषधि, दवा। संचरै =अमर करे। कमठ =कछुवा। धुनिपाइ =आवाज सुनकर।