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मैं ही मिला हूँ उससे गुनाहगार की तरह / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
उसने तो किया प्यार मुझे प्यार की तरह,
मैं ही मिला हूँ उससे गुनहगार की तरह !
कुछ बेबसी ने मेरे पांव बाँध दिए थे,
कुछ मैं भी खड़ा ही रहा दीवार की तरह !
इस दिल में सब दफ़न है चाहत भी आरजू भी ,
मत खोदिये मुझे, किसी मज़ार की तरह !
देने को कुछ नही था मिलता मुझे कहाँ से
दुनिया के क़ायदे हैं, बाज़ार की तरह !
खारों पे ही खिला किये हैं गुल ये सोंचकर,
मैं जिंदगी को जी रहा हूँ खार की तरह !
खामोश निगाहों की तहरीर पढ़ सको तो,
‘आनंद’ भी मिलेगा तुम्हे यार की तरह !!