मैं ही हूँ सपना और उम्मीद ग़ुलामों की / माया एंजलो
तुम दर्ज कर सकते हो मेरा नाम इतिहास में
अपने तीखे और विकृत झूठों के साथ
कुचल सकते हो मुझे गन्दगी में
लेकिन फिर भी धूल की तरह
मैं उड़ती जाऊँगी ।
क्या मेरी बेबाकी परेशान करती है तुम्हें ?
क्यों घिरे बैठे हो उदासी में ?
क्योंकि मैं यूँ इतराती चलती हूँ
गोया कोई तेल का कुआँ उलीच रहा हो तेल
मेरी बैठक में ।
जैसे उगते हैं चाँद और सूरज
जैसे निश्चितता से उठती हैं लहरें
जैसे उम्मीदें उछलती हैं ऊपर
उठती जाऊँगी मैं भी ।
क्या टूटी हुई देखना चाहते थे तुम मुझे ?
झुका सर और नीची निगाहें किए ?
आँसुओं की तरह नीचे गिरते कन्धे
अपने भावपूर्ण रुदन से कमज़ोर ।
क्या मेरी अकड़ से ठेस पहुँचती है तुम्हें ?
क्या तुम पर बहुत भारी नहीं गुजरता
कि यूँ कहकहे लगाती हूँ मैं
गोया मेरे घर के पिछवाड़े सोने की खदान में हो रही हो खुदाई
तुम शब्दों के बाण चला सकते हो मुझ पर
चीर सकते हो मुझे अपनी निगाहों से
अपनी नफ़रत से कर सकते हो क़त्ल
फिर भी हवा की तरह
मैं उड़ती जाऊँगी ।
क्या मेरी कामुकता परेशान करती है तुम्हें ?
क्या तुम्हें ताज्जुब होता है कि
मैं यूँ नाचती फिरती हूँ
गोया हीरे जड़े हों मेरी जाँघों के सन्धि-स्थल पर ?
इतिहास के शर्म के छप्परों से
मैं उड़ती हूँ
दर्द में जड़ जमाए अतीत से
मैं उगती हूँ
एक सियाह समन्दर हूँ मैं उछालें मारता और विस्तीर्ण
जज़्ब करता लहरों के उठने और गिरने को
डर और आतंक की रातों को पीछे छोड़ते
मैं उड़ती हूँ
आश्चर्यजनक रूप से साफ़ एक सुबह में
मैं उगती हूँ
उन तोहफ़ों के साथ जो मेरे पुरखों ने मुझे सौंपा था
मैं उठती हूँ
मैं ही हूँ सपना और उम्मीद ग़ुलामों की
मैं उड़ती हूँ
मैं उगती हूँ
मैं उठती हूँ ।