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मैं हूँ क्योंकि / कविता भट्ट


मैं हूँ क्योंकि...
ज़माने के बिछाए अंगारों पर
जेठ की दुपहरी में अकेले ही
मैंने चलने का हुनर सीखा है।

मैं हूँ क्योंकि ...
वादा खिलाफ़ी नहीं, इश्तेहारों पर
बेअदबी की, बेवफाई मेरे खूँ में नहीं
मैंने ढलने का हुनर सीखा है।
मैं हूँ क्योंकि...
दिल जलाया, रौशनी की चौबारों पर
अपना दावा यूँ ही ठोका ना कभी भी
मैंने जलने का हुनर सीखा ।